नवरात्रि की शुरुआत मां शैलपुत्री के पूजन से होती है. ये राजा हिमालय यानी शैल की पुत्री हैं और इसी कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी अर्थात् तप का आचरण करने वाली. मां ब्रम्हाचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. इसलिए इन्हें ब्रम्हाचारिणी कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मां चंद्रघंटा में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां हैं. इनके मस्तक पर अर्द्ध चंद्र सुशोभित है, इसी वजह से ये चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।
नवरात्रि का चौथा दिन मां कुष्मांडा को समर्पित है. इस दिन विधान के साथ इनका पूजन किया जाता है. इनकी मंद हंसी से ब्रम्ह्मांड का निर्माण होने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा।
बता दें कि नवरात्रि के पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है. इन्होंने अपनी गोद में कुमार कार्तिकेय को लिया हुआ है और कार्तिकेय का नाम स्कंद है. बस, इसी वजह से इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर मां कात्यायनी ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाने लगा।
नवरात्रि का सांतवा दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है. देखने में प्रचंड स्वरूप, मां अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है।
नवरात्रि के आठवें दिन दुर्गा अष्टमी होती है और इस दिन मां महागौरी का पूजन किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने कठिन तपस्या की थी।
भक्तों को सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली मां को सिद्धिरात्री के नाम से जाना जाता है और नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिरात्रि की पूजा की जाती है।